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नागर-गुरू / गोविन्ददास

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आदर-बादर करि कत बरषसि वचन अमिय रस धारा।
जे रस-सागर डूबि मरत पुनि पुन-फले पाओल पारा।।
माधव बुझल म तुय अवगाहि।
नागरि लाख भरल तुय अन्तर के परबेशव ताहि।।
की फल इंगित नयन तरंगित संगित मनमथ फाँदे।।
तुहुँ नागर गुरू मोहि पढ़ावल कपट प्रेममय बाधे।।
दुर करू लालस रसिक रसेश्वर ब्रज-रमणीगण-देवा।
गोविन्ददास कतहु गुण गायब तोहरि चरण रह सेवा।।