ए धनि आँचर वदन झपाओ।
लुबुधल मधुप चकोर विधु-तुद, अनत अनत चलि जाओ।।
मुखमंडल किअ शरद-सुधाकर, भालहि अठमिक चन्द।
मधुरिपु भरम भरम जहाँ एहन तँहकि गनिय मति-मन्द।।
जनि कह गरब पाणि-तल बारब ओ थलकमल इजोर।
तहँ नख-चान भरम भर एहन ततहि पड़त जनि भोर।।
भोहँ-धनुष किय सुतनु धुनायसि जसु शर गिरिधर काँप।
से किय अतनु पतंग शिर डारसि गोविन्ददास हिय ताप।।