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मोनालिसा-1 / सुमन केशरी

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क्या था उस दृष्टि में
उस मुस्कान में कि मन बंध कर रह गया

वह जो बूंद छिपी थी
आँख की कोर में
उसी में तिर कर
जा पहुँची थी
मन की अतल गहराइयों में
जहाँ एक आत्मा हतप्रभ थी
प्रलोभन से
पीड़ा से
ईर्ष्या से
द्वन्द्व से...

वह जो नामालूम-सी
जरा-सी तिर्यक
मुस्कान देखते हो न
मोनालिसा के चेहरे पर
वह एक कहानी है
औरत को मिथक में बदले जाने की
कहानी....