Last modified on 2 जून 2013, at 12:17

मोनालिसा-2 / सुमन केशरी

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:17, 2 जून 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुमन केशरी |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}} <poem> लि...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

लियोनार्दो
जब तुम सिरज रहे थे
मोनालिसा को
तो कैसा दर्द हुआ था
पीड़ा की कैसी लहर दौड़ी थी
शिराओं में
त्रास से कैसे शिथिल हुआ था
तन-मन तुम्हारा?

पर
कूची की पहली छुअन के साथ
कैसे सिहरा था तुम्हारा तन
मन कैसे-कैसे डूबा उतराया था
अनन्त के जलाशय में
और कैसे छलका था अमृत कुण्ड
तुम्हारे अन्तर्मन में
अन्तर्तल में

उन्हीं बून्दों से तुमने
फिर उकेरी थीं
वे पीड़ा
दर्द
और असमंजस मुस्कान...