कितनी वीरान आँखें हैं तुम्हारी
मोनालिसा
जाने क्या खोजतीं देखतीं
जीवन का कोई छोर
या
अधूरी-कथा कोई
सूत जिसके उलझे पड़े हैं
यहाँ से वहाँ तक
न जाने कहाँ तक..
कितनी वीरान आँखें हैं तुम्हारी
मोनालिसा
जाने क्या खोजतीं देखतीं
जीवन का कोई छोर
या
अधूरी-कथा कोई
सूत जिसके उलझे पड़े हैं
यहाँ से वहाँ तक
न जाने कहाँ तक..