Last modified on 17 अक्टूबर 2007, at 21:06

किरण / जयशंकर प्रसाद

Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:06, 17 अक्टूबर 2007 का अवतरण

मुखपृष्ठ: झरना / जयशंकर प्रसाद


किरण! तुम क्यों बिखरी हो आज,

रँगी हो तुम किसके अनुराग,

स्वर्ण सरजित किंजल्क समान,

उड़ाती हो परमाणु पराग।


धरा पर झुकी प्रार्थना सदृश,

मधुर मुरली-सी फिर भी मौन,

किसी अज्ञात विश्व की विकल-

वेदना-दूती सी तूम कौन?


अरुण शिशु के मुख पर सविलास,

सुनहली लट घुँघराली कान्त,

नाचती हो जैसे तुम कौन?

उषा के चंचल मे अश्रान्त।


भला उस भोले मुख को छोड़,

और चूमोगी किसका भाल,

मनोहर यह कैसा हैं नृत्य,

कौन देता सम पर ताल?


कोकनद मधु धारा-सी तरल,

विश्व में बहती हो किस ओर?

प्रकृति को देती परमानन्द,

उठाकर सुन्दर सरस हिलोर।


स्वर्ग के सूत्र सदृश तुम कौन,

मिलाती हो उससे भूलोक?

जोड़ती हो कैसा सम्बन्ध,

बना दोगी क्या विरज विशोक!


सुदिनमणि-वलय विभूषित उषा-

सुन्दरी के कर का संकेत-

कर रही हो तुम किसको मधुर,

किसे दिखलाती प्रेम-निकेत?


चपल! ठहरो कुछ लो विश्राम,

चल चुकी हो पथ शून्य अनन्त,

सुमनमन्दिर के खोलो द्वार,

जगे फिर सोया वहाँ वसन्त।