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नेताजी / उदयचन्द्र झा ‘विनोद’

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हिनक ई सभदिनुका हिस्सक छनि
एकटा भाषण बादे
भोजन करैत छथि
आन कोनो तेहन ठाम
जाथु वा नहि
एहन कोनो सभामे
जाइते टा छथि।

हिनका बूझल छनि जे लोककें
एखनो जे पसिन्न छैक
तकरा समाजवाद कहैत छैक
सभाक आरम्भमे हाथ जोड़ब
आ अन्तमे ‘जय हिन्द’ कहब
साधुवाद दैत छैक।

ई आब बिहुँसबाक कलामे
प्रवीण भ’ गेल छथि
बहुत दिन पर बिआहलि मौगी जकाँ
नवीन भ’ गेल छथि
हिनका कतेको बेर पाचल गेलनि
मुदा देह पर एकोटा दाग नहि छनि
हिनक खसबे की करतनि
माथ पर कागो पाग नहि छनि
कारण ई लोकनि
पागे बेचि अपन व्यापारक ूपजी
ठाढ़ करैत छथि
आ पछाति जखन व्यापार
चलि पड़ैत छनि
त’ एक्के बेर भ’ जाइत छथि
सभ शास्त्रक ज्ञाता
सभ मेटक सरदार
सभ सभाक सभापति।

हिनक ई सभदिनुका हिस्सक छनि
माथमे अपन दर्द
आ पैरमे लोककें लपेटि
ई अपन व्यक्तित्वहीनताक ‘औडियन्स’
बना लैत छथि
लोककें लाल बना दैत छथि
लोककें पीयर बना लैत छथि
मानचित्रमे ठाम-ठीम
दाग लगा दैत छथि।

हिनकासँ टूटल रहितो लोक
बेर पर हिनकामे सटि जाइत छनि
मारि-सम्हारि क’ सेज पर
चढ़बाक लेल सहमत होइत
पत्नी जकाँ
हिनक गोटी लाल रहिते छनि
कारण ई गोटी के चलसँ पहिने
लाल क’ दैत छथि
कोनो नितान्त खास घटनाकें
आम महाल क’ दैत छथि
ई छथि परम सात्विक लोक
हिनका लोक बुझनु वा नहि
ई लोककें बुझैत छथिन
जे लोकक अर्थ गदहा होइत छैक
हिनका बढ़बाक छनि
ई बढ़ताह
कारण आर लोक
ता लागल रहत लाइनमे
किं वा लिखैत रहत कविता
किं वा तमसाइत रहत
अपन कुमारि बेटी पर
किं वा ठोहि पाड़ि कनैत रहत
देखि क’ ननकिरबाकें
दूध बदि पिवैत पिठार।

नहि जानि कहिया धरि
हिनका दण्डवत करैत रहब
एहिना मरैत रहब।