Last modified on 6 जून 2013, at 08:57

बजार / केदार कानन

सशुल्क योगदानकर्ता २ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:57, 6 जून 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केदार कानन |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}} {{KKCatMaithili...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

व्यापि जाइत अछि
हमरा चारूकात
बजार
जतए देखी ओत्तहि
जैह देखी सैह
देखाइत अछि
बजारे-बजार

एतेक कोना बदलि गेलैक
मनुक्खक संसार
एतेक कोना पसरि गेलैक
खुजली जकाँ ई वायरस ?

महग वा सस्त
नाना प्रकारक आकर्षक
सम्मोहन आ विज्ञापनक संग
अनेक-अनेक तिकड़मसँ
जोगाओल सचार
व्यापि गेल अछि बजार

ध्वस्त भ’ गेल अछि चिनबार
कोठी भ’ गेल अछि नष्ट
तमाम कुटीर उद्योग पर
लगा देल अछि अन्तरराष्ट्रीय जाबी
हाथ पर हाथ धएने
गहन पीड़ा आ अवसादसँ भरल
सड़कक कात बैसल भेटैत अछि
कारीगर आ शिल्पी
अपन कौशलकें नुकौने
फाटल पुरान केथरीमे

कोनो बाट बचल नहि अछि
कोनो बाट सुरक्षित नहि
जतए-जतए
भेटैत अछि बजार
एही चकचोन्हीक अंधकूपमे
हे प्रजावर्ग !
आब धुनैत रहू कपार।