न दिल भरा है न अब नम रहा है आँखों में
कभू जो रोए थे ख़ूँ जम रहा है आँखों में
मैं मर चुका हूँ पे तेरे ही देखने के लिए
हबाब-वार तनिक दम रहा है आँखों में
मुवाफकत की बहुत शहरियों से मैं लेकिन
वही गज़ाल अभी रह रहा है आँखों में
वो महव हूँ कि मिसाल-ए-हबाब-ए-आईना
जिगर से अश्क निकल थम रहा है आँखों में
बसान-ए-अश्क है ‘काएम’ तू जब से आवारा
वकार तब से तेरा कम रहा है आँखों में