किराना घराने के सबसे अज़ीम गायक
अब्दुल करीम ख़ां से एक दिन उनके एक मुरीद ने पूछा
उस्ताद आपने तो सातों सुर साध लिये हैं अब कुछ बचा नहीं
खरज से रिखभ तक तीनों पर्दों के आरपार चली जाती है आपकी मीठी आवाज़
करीम ख़ां उदास स्वर में बोले
अरे कहां बेटा सिर्फ़ पंचम को ही मैं थोड़ा-सा समझ पाया हूँ
और अब इस उम्र में क्या कर पाऊंगा और
मुरीद भी उदास हो गये
उन्हें उम्मीद थी उस्ताद कुछ और रोशनी डालेंगे
अपने बेजोड़ रियाज़ पर
बहुत पहले किसी किताब में पढ़ा था यह वाक़या
उसे याद करते हुए सहसा हाथ रुक जाता है
जब भी लिखने बैठता हूं कोई कविता।