Last modified on 26 जून 2013, at 13:08

महाप्रभु / मनोज कुमार झा

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:08, 26 जून 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मनोज कुमार झा }} {{KKCatKavita}} <poem> एक पतंग न...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

एक पतंग नाचती बहुत ऊपर
बढ़ती जाती हवाओं को धकियाती हुई
चमकती किसी खबर का कोई चटख रंग ले उधार
कुबेरों की लार सूखी कागज कड़कड़

सूत नहीं कोई माँझा नहीं चरखी नहीं
कोई संग नहीं इस धरती से

इसकी उड़ान ही फाड़ेगी इसे किसी धूप वाले दिन में
गिरेगी धरती पर धड़ाम
भृत्यगण दौड़ेंगे बच्चों के प्रबंधन में
       वे रोएँ कि उन्हीं के लिए वह घूमता रहा आकाश-पाताल
कोई नहीं रोएगा
कोई निकल जाएगा मूढ़ी फाँकने
कोई खेलने कंचा
कोई ढूँढ़ने गेंद उस सुदूर झाड़ी में।