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थकन / फ़ाज़िल जमीली

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समन्दर के सफ़र ने
इतना थका दिया है
के अपने घर में क़याम करना भी
अब थकन है
किसी सी कोई कलाम करना भी
अब थकन है
वो जिनसे बातें करें
तो रातें गुज़रती जाएँ
उन्हें नमस्ते-सलाम करना भी
अब थकन है
समन्दरों की थकान उतरने में
देर लगती है, जानता हूँ
कोई धनक हो के अप्सरा हो
निढाल होकर भी रक्स में हो
जो आसमानों से पानियों में
उतरती चाँदनी के अक्स में हो
वो जल परी हो
यह मानता हूँ
मगर ज़रा देर के लिए तुम
मेरे ख़यालों के नर्म बिस्तर पर लेट जाओ
जो ख़्वाब पूरे नहीं हुए हैं
वो ख़्वाब देखो...
कोई सितारा कभी हमारा भी होगा रोशन
तुम उस सितारे को आँख भर कर
जो देख लोगी
तो पहले जितने सफ़र किए हैं
किसी सफ़र की थकन रहेगी
न घर में अपने क़ियाम करने
किसी से कोई कलाम करने
दुआ, नमस्ते, सलाम करने में
कोई उलझन, कसक रहेगी
रही अगर तो
दिल-ओ-नज़र में नए सफ़र की
चमक रहेगी...।