Last modified on 29 जून 2013, at 18:48

ख़्वाब / फ़ाज़िल जमीली

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:48, 29 जून 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=फ़ाज़िल जमीली |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

तुझे छूने की हसरत में
दरख़्तों से लिपटकर मैं
लचकती डालियों को चूम लेता हूँ

हवा पत्ते गिराती है
तो मैं तुझसे बिछड़ने का
वो मंज़र याद करता हूँ

कि तू एक पेड़ के नीचे खड़ी है
और मैं तेरी नज़र की
सरहदों से दूर होता जा रहा हूँ

एक परिन्दा फड़फड़ाकर उड़ गया है
मैं पलटकर देखता हूँ
गर्द आलूदा फ़िज़ा में
कुछ नज़र आता नहीं है

सिर्फ़ मैं हूँ
जो मुझे आधा दिखाई दे रहा है
और आधा क्या ख़बर किस भेस में है
देस में है या किसी परदेस में है ।