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बादल / अनिल जनविजय

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पवन के घोड़ों पर सवार

दूर देश से आते हैं

जल भरी ढेरों मशकें लाते हैं

जब तक कुछ सोचे-समझे यह धरती

उसके साथ होली खेल आगे बढ़ जाते हैं

ख़ुद को आकाश का सम्बन्धी बतलाते हैं


(रचनाकाल : 1981)