Last modified on 21 अक्टूबर 2007, at 01:21

बारिश / अनिल जनविजय

77.41.24.214 (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 01:21, 21 अक्टूबर 2007 का अवतरण


रात भर चुप-चुप

रोती रही रात

दिन भर टिप-टिप

सिसकता रहा दिन

बिजली के तार

पेड़-पौधे और मकान

सब के सब फूट-फूट कर रोते रहे

नगर भर को आंसुओं में भिगोते रहे

रोते रहे, डुबोते रहे


(रचनाकाल : 1982)