रात भर चुप-चुप
रोती रही रात
दिन भर टिप-टिप
सिसकता रहा दिन
बिजली के तार
पेड़-पौधे और मकान
सब के सब फूट-फूट कर रोते रहे
नगर भर को आंसुओं में भिगोते रहे
रोते रहे, डुबोते रहे
(रचनाकाल : 1982)
रात भर चुप-चुप
रोती रही रात
दिन भर टिप-टिप
सिसकता रहा दिन
बिजली के तार
पेड़-पौधे और मकान
सब के सब फूट-फूट कर रोते रहे
नगर भर को आंसुओं में भिगोते रहे
रोते रहे, डुबोते रहे
(रचनाकाल : 1982)