दुश्मनी की इस हवा को तेज़ होना चाहिए
उस की कश्ती को सर-ए-साहिल डुबोना चाहिए
छीन कर सारी उम्मीदें मुझ से वो कहता है अब
किश्त-ए-दिल में आरजू का बीज बोना चाहिए
इस समंदर की कसाफ़त आँख में चुभने लगी
उस का चेहरा और ही पानी से धोना चाहिए
सौंप जाएँ इन दरख़्तों को निशानी नाम की
हम कभी थे अगली रूत को इल्म होना चाहिए
ये भी कोई तुक हुई के कुछ हुआ तो रो पड़े
शख़्सियत का रंग ‘फ़िक्री’ यूँ न खोना चाहिए