Last modified on 15 जुलाई 2013, at 02:39

परिचित आवाज़ / मिथिलेश श्रीवास्तव

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:39, 15 जुलाई 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मिथिलेश श्रीवास्तव |संग्रह=किसी ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

परिचित आवाज़ें डराती हैं
डराती है बादलों से गिरी हुई बिजली
कँपाता है दूसरी मँज़िल पर बन्द होता दरवाज़ा
पहली मँज़िल का मेरा घर
खेलते हुए बच्चे की गेंद की धब-धब
निचली मँज़िल में फैलाती है लगभग आतंक
दौड़कर भागते हुए क़दमों की आहट
दरवाज़ा खटखटाए जाने का खटका
बैठा जाती है मन में हर रात

दूसरी मँज़िल से पहली मँज़िल पर आती हुई
आवाज़ कहीं दूर से आती हुई लगती है

दूर कहीं बूढ़ी हो रही एक माँ है
एक बेरोजगार भाई है जो घर
देर से लौटता है या किसी रात
लौटता ही नहीं है
लौटकर बिस्तर में लेट जाता है
सपना देखने और नींद में बड़बड़ाने से
बचना चाहता है
इन सबकी भी होती है अपनी आवाज़ ।