Last modified on 17 जुलाई 2013, at 19:07

फासले / उमा अर्पिता

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:07, 17 जुलाई 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उमा अर्पिता |संग्रह=कुछ सच कुछ सप...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

चाहती तो हूँ कि
तमाम फासले मैं ही तय कर लूँ, और
बना रहने दूँ तेरा मान-अभिमान
पर, वो फासले, जो
अकेले तय किए जाते हैं
कभी मिटते नहीं/यथावत बने रहते हैं...
फासले तय करने पर भी
उनका यथावत बने रहना
पैरों के छालों से
कहीं अधिक दुखदायी होता है
इसलिए मेरे दोस्त, कुछ कदम
तुम्हें भी बढ़ना होगा...!