Last modified on 29 जुलाई 2013, at 09:05

अगर हमारे ही दिल मे ठिकाना चाहिए था / शकील जमाली

सशुल्क योगदानकर्ता २ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:05, 29 जुलाई 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शकील जमाली }} {{KKCatGhazal}} <poem> अगर हमारे ही...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

अगर हमारे ही दिल मे ठिकाना चाहिए था
तो फिर तुझे ज़रा पहले बताना चाहिए था

चलो हमी सही सारी बुराईयों का सबब
मगर तुझे भी ज़रा सा निभाना चाहिए था

अगर नसीब में तारीकियाँ ही लिक्खीं थीं
तो फिर चराग़ हवा में जलाना चाहिए था

मोहब्बतों को छुपाते हो बुज़दिलों की तरह
ये इश्तिहार गली में लगाना चाहिए था

जहाँ उसूल ख़ता में शुमार होते हों
वहाँ वक़ार नहीं सर बचाना चाहिए था

लगा के बैठ गए दिल को रोग चाहत का
ये उम्र वो थी कि खाना कमाना चाहिए था