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शर्बत-ए-वस्ल पिला जा लब-ए-शीरीं की क़सम / 'सिराज' औरंगाबादी

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शर्बत-ए-वस्ल पिला जा लब-ए-शीरीं की क़सम
जान जाता है मिरा सूर-ए-यासीं की क़सम

देख मुझ हाल कूँ ऐ ताज़ा बहार-ए-ख़ूबी
अश्‍क-ए-रंगीं हैं रवाँ दामन-ए-गुल-चीं की क़सम

मकतब-ए-इश्‍क़ में आ अक्ल की तख़्ती धोना
रास्त है ये सुख़न उस्ताद की तलक़ीं की क़सम

शीशा-ए-ख़ातिर-ए-नाजुक कूँ मिरे मत कर चूर
ऐ सितमगर तुझे अपने दिल-ए-संगी की क़सम

अष्क है तेल शब-ए-हिज्र में ऐ जान-ए-‘सिराज’
हर पलक हसरत-ए-ज़ैतून है वत्तीं की क़सम