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अहेरी / अचल वाजपेयी

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मैंने भोर की धूप को

कुछ पल देखा

फिर उसके गुलाब झर गए

आसावरी थम गई


मेरे अन्तर्मन

न जाने क्यों तुम में

एक अहेरी प्रभाव रहता है