उड़ते हुए गगन में
परिन्दों का शोर
दर्रों में, घाटियों में
ज़मीन पर
हर ओर...
एक नन्हा-सा गीत
आओ
इस शोरोगुल में
हम-तुम बुनें,
और फेंक दें हवा में उसको
ताकि सब सुने,
और शान्त हों हृदय वे
जो उफनते हैं
और लोग सोचें
अपने मन में विचारें
ऐसे भी वातावरण में गीत बनते हैं।