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बटोहिया / रघुवीर नारायण

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   ♦   रचनाकार: रघुबीर नारायण

सुंदर सुभूमि भैया भारत के देसवा से
मोरे प्राण बसे हिम-खोह रे बटोहिया
एक द्वार घेरे रामा हिम-कोतवलवा से
तीन द्वार सिंधु घहरावे रे बटोहिया

जाहु-जाहु भैया रे बटोही हिंद देखी आउ
जहवां कुहुंकी कोइली बोले रे बटोहिया
पवन सुगंध मंद अगर चंदनवां से
कामिनी बिरह-राग गावे रे बटोहिया

बिपिन अगम घन सघन बगन बीच
चंपक कुसुम रंग देबे रे बटोहिया
द्रुम बट पीपल कदंब नींब आम वॄ‌छ
केतकी गुलाब फूल फूले रे बटोहिया

तोता तुती बोले रामा बोले भेंगरजवा से
पपिहा के पी-पी जिया साले रे बटोहिया
सुंदर सुभूमि भैया भारत के देसवा से
मोरे प्रान बसे गंगा धार रे बटोहिया

गंगा रे जमुनवा के झिलमिल पनियां से
सरजू झमकी लहरावे रे बटोहिया
ब्रह्मपुत्र पंचनद घहरत निसि दिन
सोनभद्र मीठे स्वर गावे रे बटोहिया

उपर अनेक नदी उमडी घुमडी नाचे
जुगन के जदुआ जगावे रे बटोहिया
आगरा प्रयाग काशी दिल्ली कलकतवा से
मोरे प्रान बसे सरजू तीर रे बटोहिया

जाउ-जाउ भैया रे बटोही हिंद देखी आउ
जहां ऋषि चारो बेद गावे रे बटोहिया
सीता के बीमल जस राम जस कॄष्ण जस
मोरे बाप-दादा के कहानी रे बटोहिया

ब्यास बालमीक ऋषि गौतम कपिलदेव
सूतल अमर के जगावे रे बटोहिया
रामानुज-रामानंद न्यारी-प्यारी रूपकला
ब्रह्म सुख बन के भंवर रे बटोहिया

नानक कबीर गौर संकर श्रीरामकॄष्ण
अलख के गतिया बतावे रे बटोहिया
बिद्यापति कालीदास सूर जयदेव कवि
तुलसी के सरल कहानी रे बटोहिया

जाउ-जाउ भैया रे बटोही हिंद देखि आउ
जहां सुख झूले धान खेत रे बटोहिया
बुद्धदेव पॄथु बिक्रमा्रजुन सिवाजी के
फिरि-फिरि हिय सुध आवे रे बटोहिया

अपर प्रदेस देस सुभग सुघर बेस
मोरे हिंद जग के निचोड़ रे बटोहिया
सुंदर सुभूमि भैया भारत के भूमि जेही
जन 'रघुबीर. सिर नावे रे बटोहिया.

'बटोहिया' एक ऐसी रचना जो बिहार के प्रथम भोजपुरी राष्ट्रगीत का दर्जा पा चुकी कविता है.१९७० तक बिहार स्टेट टेक्स्ट बुक समिति द्वारा कक्षा १० और ११ की प्रकाशित हिंदी काव्य संग्रह के आवरण पृष्ठ पर 'बटोहिया' का मुद्रण अनवरत किया जाता था.गीत की कीर्ति सरहद पार मारीशस, त्रिनिदाद, फिजी, गुयाना तक थी. दुर्भाग्यवश बढ़ती उम्र के साथ बटोहिया की वह लोकप्रियता छिन गई.