शरद गीत / वसन्त कुमार

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शरद रूप के आइल रे मन, दरद रूप के आइल।
ओस रूप धरि बीतल बतिया, कन-कन में घुंघुआइलद।
तरल सीत से भइल पुहपुही
घास-पात ठंढाइल
सुधि के सीत भिंजावत अँखिया
पोर-पोर अकुलाइल
पपनी पर के बूँद-बूँद में उतरि बिथा मुसुकाइल।
रे मन, शरद रूप के आइल।।
चटकल कलिया डार-डार पर
लदल गीत लहराइल
ठूठल मन के ठूँठ फुनुगिया-
सूखि गीत भदराइल
बिछुड़ल मीठ पीर जिनगी के, अब आगे मँड़राइल।
रे मन, शरद रूप के आइल।।
पंछी के गीतन में बिसुरल
धुन आइल अलसाइल
जिनगी के फइलल घाटी में
सूना मन घबराइल
पात-पात के ढरत लोर में छलकि प्राण हहराइल।
रे मन, शरद रूप के आइल।।

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