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पहचान / वसन्त कुमार

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आदमी आदमी के पहचान ली
दरियाव दरियाव के जान ली
त समुन्दर काहे ना लहरी ?
भाव भाव के मान ली
बूँद बूँद के सान ली
त लहर काहे ना छहरी ?
रूप रूप के बाँध ली
रंग-रंग के छान ली
त इन्द्रधनुष काहे ना उभरी ?
आँखि- आँखि के दान ली
जोत जोत के मुस्कान ली
त भोर काहे ना बहुरी ?
लोर लोर के टान ली
दर्द दर्द के थाम ली
त सुख काहे ना पसरी ?