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आप हो / राजूराम बिजारणियां

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चुड़लो लाख रो
तारां छाई चूंदड़
बाजणां बिछिया
जोड़ो फूंदा जड़ी जूत्यां रो.!

जद जद धरया आप
आंगणै पग
साथै साथै आयो
इण भांत लटरम पटरम।

‘‘जी..क्यूं ढोवो भार
थक जांवता हुयसो.!
रैवण दिया करो।’’

कै ई देवती हरमेस
रट्या रटाया सबद
आप रै ढ़ोलियै बिराजणै सूं
पैलो-पैल।

अर आप.?
बस मुळकता।

आज सून...!
साव सून...!!

म्हारी दीठ लटरम पटरम
आप सारू खजानो!
नीं...स्यात
म्हारै सारू ई!

अेक अेक चीज
जोऊं-पूंछूं
करूं लाडिया

सोचूं
इण इण ठौड़
मंड्या हुयसी
मांडणां
आपरी आंगळ्यां रा

नेह रो परस
मिट्यो थोड़ै ई हुयसी
अजै लग.?

आज आप नीं
आप साथै आयो खजानो
बणै कारण
म्हारै होठां री मुळक
हियै री पुळक रो।

बंधावै थ्यावस
...कै आप हो!