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आंको / कन्हैया लाल सेठिया

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साव निढाल
धरती,
पाडै चाटयोड़ो
गिगनार,
हुग्या चेताचूक
अणु विसफोट स्यूं
पांचो तत,
सिलगै अंतरिख
बणग्यो
अमरित सो पाणी
काळकूट
संजीवणी पून
शेषनाग री फुंकार,
छोड़ दियो रितुआं धरम
पिघलण लागग्या
दोन्यूं धूर
छोड़ दी समन्दर सींव,
हुसी परलै
दिखै परतख
किचरीजती
काल पुरूष रै
जबाडां तलै
आखी जीवा जूण,
करसी हूण
सिस्टी नै
निरबीज,
भरमीज‘र भटकगी
चेतणा री दीठ
कठै बुद्ध ?
सुणीजै कानां में
जुद्ध, जुद्ध जुद्ध !