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करसो / कन्हैया लाल सेठिया

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बावै
सिस्टी रै खेत में
करसो गिगनार
सूरज रो बीज,
सींचै हाळण पून
काढ‘र समंदर रै
कुएं स्यूं
बादळां री भरी चड़स
पांक्यां फसल
चिगदै
अंधेरै रै रिगदै स्यूं खळो
निकळै तारां रा दाणां
आवै चुगण नै
खोल‘र
ऊजळी पांखां
हिल्योड़ो
चांद कबूतर !