Last modified on 17 अक्टूबर 2013, at 14:51

मिनख..! / कन्हैया लाल सेठिया

आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:51, 17 अक्टूबर 2013 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

बोलै
रिण रोही में
भोड बिलाव
पेट दूखै
होको पीस्यूं
करै
आळां में बैठी
कमेड़यां
कूटूं छूं
पीसूं छूं
लड़ै सरत‘री राड़
बोछ‘रड़ी लैलड़यां
तू गा तू गा,
फिरै अडांवां में
हैंकड़ तीतर
करता तू कर तू कर
आवै चीत जद
बाळपणै में
सुण्योड़ी बातां
हुवै बीं खिण
रस स्यूं गळगच मन
जुड़योड़ा हा
कती अपणायत स्यूं
कुदरत‘र जीवण
पण बणा दियो
जीभ ड़ाकण
मिनख नै
सरबभखसी रावण !