Last modified on 19 अक्टूबर 2013, at 08:25

थांरे कारण / कुंदन माली

आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:25, 19 अक्टूबर 2013 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

गैरी घाटी हेत री
जुग-जुग लाम्बा लोग
उथल-पाथल प्रेम-रस
सब नै पांवधोक
हियै हिलोळा नाम रा
मूड़ै
मीथा बोल
माठौ मन क्यूं बावड़ै
किण री मांडां ओक

थांरौ घर-घर आंगणौ
थांरी काया-अंग
थांरा मैली गोखड़ा
चढ़ै न दूजो रंग
एक साध्यौ सब डूबग्या
सधी एक नीं बात
बात-बात रै कारणै
अजब-गजब रा ढंग

कन्नी काटै आप सूं
टूंकै छांव खजूर
रैवै किण रै आसरै
बड़लो नांव हजूर !
इकतारौ गाया करै
धरम-करम री बात
मरवन रोवै रोवणा
सरवण साथै घात

ज्यूं आया सूं चालग्या
राजा रंक फकीर
छोड़ो नी चितारणी
वाह रे वाह तकदीर
नीं भूल्या नीं याद है
नीं पाया परमांण
थंरै सुख रै कारणै
मच्यौ मौत घमसांण !