Last modified on 21 अक्टूबर 2013, at 15:56

सैनांणी / मेघराज 'मुकुल'

आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:56, 21 अक्टूबर 2013 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


"सैनांण पड्यो हथलेवे रो,हिन्लू माथै में दमकै ही
रखडी फैरा री आण लियां गमगमाट करती गमकै ही
कांगण-डोरों पूंछे माही, चुडलो सुहाग ले सुघडाई
चुन्दडी रो रंग न छुट्यो हो, था बंध्या रह्या बिछिया थांई

अरमान सुहाग-रात रा ले, छत्राणी महलां में आई
ठमकै सूं ठुमक-ठुमक छम-छम चढ़गी महलां में सरमाई
पोढ़ण री अमर लियां आसां,प्यासा नैणा में लियां हेत
चुण्डावत गठजोड़ो खोल्यो, तन-मन री सुध-बुध अमित मेट

पण बाज रही थी सहनाई ,महलां में गुंज्यो शंखनाद
अधरां पर अधर झुक्या रह गया , सरदार भूल गयो आलिंगन
राजपूती मुख पीलो पड्ग्यो, बोल्यो , रण में नही जवुलां
राणी ! थारी पलकां सहला , हूँ गीत हेत रा गाऊंला
आ बात उचित है कीं हद तक , ब्या" में भी चैन न ले पाऊ ?
मेवाड़ भलां क्यों न दास, हूं रण में लड़ण नही ञाऊ
बोली छात्रणी, "नाथ ! आज थे मती पधारो रण माहीं
तलवार बताधो , हूं जासूं , थे चुडो पैर रैवो घर माहीं

कह, कूद पड़ी झट सेज त्याग, नैणा मै अग्नि झमक उठी
चंडी रूप बण्यो छिण में , बिकराल भवानी भभक उठी
बोली आ बात जचे कोनी,पति नै चाहूँ मै मरवाणो
पति म्हारो कोमल कुम्पल सो, फुलां सो छिण में मुरझाणो
पैल्याँ कीं समझ नही आई, पागल सो बैठ्यो रह्यो मुर्ख
पण बात समझ में जद आई , हो गया नैन इक्दम्म सुर्ख
बिजली सी चाली रग-रग में, वो धार कवच उतरयो पोडी
हुँकार "बम-बम महादेव" , " ठक-ठक-ठक ठपक" बढ़ी घोड़ी

पैल्याँ राणी ने हरख हुयो,पण फेर ज्यान सी निकल गई
कालजो मुंह कानी आयो, डब-डब आँखङियां पथर गई
उन्मत सी भाजी महलां में, फ़िर बीच झरोखा टिका नैण
बारे दरवाजे चुण्डावत, उच्चार रह्यो थो वीर बैण
आँख्या सूं आँख मिली छिण में , सरदार वीरता बरसाई
सेवक ने भेज रावले में, अन्तिम सैनाणी मंगवाई
सेवक पहुँच्यो अन्तःपुर में, राणी सूं मांगी सैनाणी
राणी सहमी फ़िर गरज उठी, बोली कह दे मरगी राणी

फ़िर कह्यो, ठहर ! लै सैनाणी, कह झपट खडग खिंच्यो भारी
सिर काट्यो हाथ में उछल पड्यो, सेवक ले भाग्यो सैनाणी
सरदार उछ्ल्यो घोड़ी पर, बोल्यो, " ल्या-ल्या-ल्या सैनाणी
फ़िर देख्यो कटयो सीस हंसतो, बोल्यो, राणी ! राणी ! मेरी राणी !

तूं भली सैनाणी दी है राणी ! है धन्य- धन्य तू छत्राणी
हूं भूल चुक्यो हो रण पथ ने, तू भलो पाठ दीन्यो राणी
कह ऐड लगायी घोड़ी कै, रण बीच भयंकर हुयो नाद
के हरी करी गर्जन भारी, अरि-गण रै ऊपर पड़ी गाज

फ़िर कटयो सीस गळ में धारयो, बेणी री दो लाट बाँट बळी
उन्मत बण्यो फ़िर करद धार, असपत फौज नै खूब दळी
सरदार विजय पाई रण में , सारी जगती बोली, जय हो
रण-देवी हाड़ी राणी री, माँ भारत री जय हो ! जय हो !