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उपलब्धि / धर्मवीर भारती

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मैं क्या जिया ?

मुझको जीवन ने जिया -

बूँद-बूँद कर पिया, मुझको

पीकर पथ पर ख़ाली प्याले-सा छोड़ दिया


मैं क्या जला ?

मुझको अग्नि ने छला -

मैं कब पूरा गला, मुझको

थोड़ी-सी आँच दिखा दुर्बल मोमबत्ती-सा मोड़ दिया


देखो मुझे

हाय मैं हूँ वह सूर्य

जिसे भरी दोपहर में

अँधियारे ने तोड़ दिया !