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आग / सलाम मछलीशहरी

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अब क़लम में
एक रंगीं इत्र भर लो
तुम हसीं फूलों के शाइर हो कोई ज़ालिम न कह दे
शोला-ए-एहसास के काग़ज़ पे कुछ लिखने चला था
और काग़ज़ पहले ही इक राख सा था
बात वाज़ेह ही नहीं है

शाइर-ए-गुल
दाएरे सब मस्लहत-बीनी के अब मौहूम से हैं
बात खुल कर कह न पाए तुम
तो बस ज़िरो रहोगे

अब क़लम में आग भर लो
आग तुम को राख कर देने से पहले सोच लेगी
ज़िंदा रहने दा इसे
शायद ये मेरी लाज रख ले
लोग अब तक आगे के मअ’नी ग़लत समझे हुए हैं
आग आँसू आग शबनम
आग आदम के रबाब-ए-अव्वलीं की गीत