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धमधूसर कव्वाल / काका हाथरसी

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मेरठ में हमको मिले धमधूसर कव्वाल

तरबूजे सी खोपड़ी, ख़रबूजे से गाल

ख़रबूजे से गाल, देह हाथी सी पाई

लंबाई से ज़्यादा थी उनकी चौड़ाई

बस से उतरे, इक्कों के अड्डे तक आये

दर्शन कर घोड़ों ने आँसू टपकाये

रिक्शे वाले डर गये, डील-डौल को देख

हिम्मत कर आगे बढ़ा, ताँगे वाला एक

ताँगे वाला एक, चार रुपये मैं लूँगा

दो फ़ेरी कर, हुज़ूर को पहुँचा दूँगा