Last modified on 24 अक्टूबर 2013, at 08:00

यहाँ से राजन हटाओ झगड़ा सीया को दे दो श्रीराम जी को / महेन्द्र मिश्र

Mani Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:00, 24 अक्टूबर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेन्द्र मिश्र |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

यहाँ से राजन हटाओ झगड़ा सीया को दे दो श्रीराम जी को।
जनक दुलारी उमर की वारी है प्राण प्यारी श्रीराम जी को।

न था मुनासिब तुझे चुराना वो हर के लाना श्री जानकी को,
हँसी करायो पुलस्त्य जी को वन-वन फिराया श्रीराम जी को।

गया था तुम भी जनक सभा में वहद्द से क्यों ना हरे सीया को,
लगा के आयो सरम की बेरी प्रताप देखा श्रीराम जी का।

प्रलय की बिजली चमक रही है विपद की बादल गरज रही है,
मौत तुम्हारी बुला रही है कजां दे देरी लगा रही है।

बचोगे कब तक अधर्म करके अभी शरण लो श्रीराम जी को,
बचा लो लंका रहा निशका विनय सुनावो श्रीराम जी को।
सदा महेन्दर दिलों के अन्दर जपो निरन्तर श्रीराम जी को।