Last modified on 12 दिसम्बर 2007, at 03:01

सिपाही और तमाशबीन / त्रिलोचन

Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:01, 12 दिसम्बर 2007 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

घायल हो कर गिरा सिपाही और कराहा।
एक तमाशबीन दौड़ा आया। फिर बोला,
‘‘योद्धा होकर तुम कराहते हो, यह चोला
एक सिपाही का है जिस को सभी सराहा

करते हैं, जिस की अभिलाषा करते हैं, जो
दुर्लभ है, तुम आज निराशावादी-जैसा
निन्द्य आचरण करते हो।’’ कहना सुन ऐसा
उधर सिपाही ने देखा जिस ओर खड़ा हो

उपदेशक बोला था। उन ओठों को चाटा
सूख गए थे जो, स्वर निकला, ‘‘प्यास !’’ खड़ा ही
सुनने वाला रहा। सिपाही पड़ा पड़ा ही
करवट हुआ, रक्त अपना पी कुछ दुख काटा—

‘‘जाओ चले, मूर्ख दुनिया में बहुत पड़े हैं।
उन्हें सिखाओ हम तो अपनी जगह अड़े हैं।’’