Last modified on 3 नवम्बर 2013, at 15:52

जब कभी / अर्चना भैंसारे

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:52, 3 नवम्बर 2013 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

और जब कभी
मैली हो जाती रुह

तब याद आती
तुम्हारे मन में बहते
मीठे झरने की

कि जिसमें डूबकर
साफ़ करती हूँ आत्मा अपनी।