Last modified on 4 नवम्बर 2013, at 09:05

ताब खो बैठा हर इक जौहर-ए-ख़ाकी मेरा / अमीर हम्ज़ा साक़िब

सशुल्क योगदानकर्ता ३ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:05, 4 नवम्बर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अमीर हम्ज़ा साक़िब }} {{KKCatGhazal}} <poem> ताब ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

ताब खो बैठा हर इक जौहर-ए-ख़ाकी मेरा
जाने किस रंग में होगा गुल-ए-ख़ूबी मेरा

ज़ब्त-ए-गिर्या में है मश्शाक़ तमन्ना तू भी
क़तरा क़तरा सही दामन तो भिगोती मेरा

चाक-ए-वहशत से उतारता तो करम भी फ़रमा
यूँही कब से है धरा कूज़ा-ए-हस्ती मेरा

तेरी ख़ुश-बू तेरा पैकर है मेरे शेरों में
जान यूँही नहीं ये तर्ज़-ए-मिसाली मेरा

मेरी दुनिया इसी दुनिया में कहीं रहती है
वर्ना ये दुनिया कहाँ हुस्न-ए-तलब थी मेरा