Last modified on 10 नवम्बर 2013, at 16:44

पैमाना / प्रांजल धर

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:44, 10 नवम्बर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रांजल धर |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

वे गहरी नींद सोते हैं
क्योंकि उन्हीं के कन्धों पर पूरे देश का भार है ।
हमें जागना पड़ता है
हम भारवाहक हैं ।
वे वरेण्य हैं, हम नगण्य ।
वे नींद के दास हैं और नींद हमारी दासी ।
श्रेष्ठत्व का यह कैसा पैमाना है !
ख़ैर ।