पहाड़ पर रहने से
पेड़ का दिल पत्थर नहीं हो जाता
और न ही विषधर के लिपटे रहने से विषैला
बभनटोली में हो या चमरटोली में
पेड़, पेड़ ही रहता है
वह पंडिताई का दम्भ नहीं भरता
और न ही चमरौंधी की हीनता आती है उसमें
पेड़ कभी जाति नहीं पूछते
और न ही किसी का धर्म जानने की
होती है उसमें जिज्ञासा
चाहे मुसलमानों के मुहल्ले में रहे या हिन्दुओं के !