Last modified on 21 नवम्बर 2013, at 07:10

चलो सुरंग से पहले गुज़र के देखा जाए / अतीक़ुल्लाह

सशुल्क योगदानकर्ता ३ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:10, 21 नवम्बर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अतीक़ुल्लाह }} {{KKCatGhazal}} <poem> चलो सुरंग ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

चलो सुरंग से पहले गुज़र के देखा जाए
फिर इस पहाड़ को काँधों पे धर के देखा जाए

उधर के सारे तमाशों के रंग देख चुके
अब इस तरफ़ भी किसी रोज़ मर के देखा जाए

वो चाहता है क्या जाए ए‘तिबार उस पर
तो ए‘तिबार भी कुछ रोज़ कर के देखा जाए

कहाँ पहुँच के हदें सब तमाम होती हैं
इस आसमान से नीचे उतर के देखा जाए

ये दरमियान में किस का सरापा आता है
अगर ये हद है तो हद से गुज़र के देखा जाए

ये देखा जाए वो कितने क़रीब आता है
फिर इस के बाद ही इंकार कर के देखा जाए