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दुख / दुष्यन्त जोशी

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आपां
एक बात माथै
जद बार-बार
नीं हांस सकां
तद एक ई
दुख माथै
बार-बार रोवां क्यूं हां?
 
लागै
आपां जाण-बूझ’र
दुखी हां।