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दरपण / कन्हैया लाल सेठिया
आशिष पुरोहित
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रै’सी चैरो सागी
फिर भलांई देखती
कता ही दरपण !
बणग्यो थारै
निळजै मन रो बैम
बापड़ी आंख्या रो
विसन !