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समदीठ / कन्हैया लाल सेठिया

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छोड़ देवै रूंख नै
रस पी’र फळ
सौरम बखेर’र फूल
झालै बांनै जामण धूळ
पण कोनी राखै मिनख
समदीठ
बो ज्यावै मोह वस
कुदरत रै नेम नै भूल !