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परजातंतर / कन्हैया लाल सेठिया

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बड़ पींपळ
दोन्यूं पाड़ोसी
जद कद करै हताई
बड़ बोल्यो में ल्ूांठो ठाकर
तू तो है छुटभाई
बैठी आळै चीड़ी सोच्यो
बात करै अै कांई ?
ऊभो बूढो नीम कयो तू
सुणलै जणां बताई
पींपळ बोल्यो तू के जोगी
क्यां नै जटा बढा़ई ?
भूंडो लागै नहीं मिल्यो के
तनै कठेई नाई !
बड़लो चिड़ग्यो पींपळ कांई
अकल निसरगी थारी
मैं रूंखा रो राजा
थे हो सगला परजा म्हारी
कही नीम नै बात चिड़कली
बीं नै झूंझल आई
कठै रया अब राजा राणी
झूठी करै बडाई
बगत पळटग्यो
आज हिमालो बणग्यो जाबक राई,
बड़ कीं कैंतो
इण स्यूं पैली
आंधी जबरी आई
नाचण लागी ढूब
उतरगी बड़लै री सांडाई !