कोसों तक जब सिर्फ सन्नाटा गूंजता है
तब बजाता है आदमी
बांसुरी, अळगोजा
मोरचंग, खड़ताल
रावणहत्था या सांरगी
बहुत अकेला हुआ आदमी
तब गाता है रेत राग।
कोसों तक जब सिर्फ सन्नाटा गूंजता है
तब बजाता है आदमी
बांसुरी, अळगोजा
मोरचंग, खड़ताल
रावणहत्था या सांरगी
बहुत अकेला हुआ आदमी
तब गाता है रेत राग।