Last modified on 29 नवम्बर 2013, at 00:03

रेत (2) / अश्वनी शर्मा

आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:03, 29 नवम्बर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अश्वनी शर्मा |संग्रह=रेत रेत धड़क...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कोसों तक जब सिर्फ सन्नाटा गूंजता है
तब बजाता है आदमी
बांसुरी, अळगोजा
मोरचंग, खड़ताल
रावणहत्था या सांरगी
बहुत अकेला हुआ आदमी
तब गाता है रेत राग।