रेत अलसाई-सी
यहीं पसरी रहती है
आंधियां ही आती हैं
और चली जाती है
जैसे आते-जाते हैं
सुख-दुख
आदमी के जीवन में
स्थितप्रज्ञ संन्यासी है रेत!
रेत अलसाई-सी
यहीं पसरी रहती है
आंधियां ही आती हैं
और चली जाती है
जैसे आते-जाते हैं
सुख-दुख
आदमी के जीवन में
स्थितप्रज्ञ संन्यासी है रेत!