रेत के उड़ते रहे
यूं ही बगूले
जैसे
चिंगारी भभक
आकाश छू ले
शास्त्र कहता
शब्द ही आकाश होता
हम कहां कब
शब्द या आकाश भूले।
रेत के उड़ते रहे
यूं ही बगूले
जैसे
चिंगारी भभक
आकाश छू ले
शास्त्र कहता
शब्द ही आकाश होता
हम कहां कब
शब्द या आकाश भूले।