रह-रह स्मृति में कौंध रहा
इक्यासी वर्षों का जीवन
समझाता हूँ, पर नहीं मानता
मुड़-मुड़ झाँक रहा कवि - मन
बचपन बीता ताड़ना बीच
ज्यों मलिन बसन की फाँस - फींच
परिणाम हुआ खिल उठा कमल
संतोषित हो हँस पड़ा कीच
फिर भरी दुपहरि यौवन की-
मलियानित के झोंके लायी
इस खिले कमल पर भृंग -वृन्द,
तितलियाँ पुलक कर मँडरायीं
ली गयी तलाश कलाई -
जैसे ही तितली के पंख छुये
आँखें निकाल ली गयीं -
व्यर्थ दुनियाँ भर में बदनाम हुए
अन्यों के हित ही जिया किया
अब तो जाने की तैयारी
लेकिन कब फुर्सत देती है
अब भी वंचक दुनियाँदारी
अंतिम साँसो तक इसी तरह
इस जीवन - रथ को चलना है
चुक गया स्नेह, वर्तिका जली
फिर भी दीपक को जलना है