प्रेम
खण्डहरों के अन्तःपुर में
झुरमुटों से घिरी
एक गहरी बावड़ी है
जिसके भीतर हम
ध्वनियों से गूँजते हैं
जाते हैं...
लौटते हैं
सदियों से चुप
उसके निथरे जल में
कुछ हरी पत्तियाँ
डालें और आकाश
देखते रहते हैं अपना चेहरा
पानी की आत्मा
अपने हरेपन
और ध्वनियों के स्पर्श में
थरथराती है...!